जानकी अम्मा को आवभगत करना, चाय बनाना और अपनी बेटी को दुलार करना पसंद है। वह एक कमजोर कद-काठी की, हँसी-मजाक करने वाली, संज्ञानात्मक विकलांगता युक्त महिला हैं। जब हम चाय पीने के लिए बैठते हैं, तो वह चाहती है कि हम उनके नए जूते और कपड़े देखें जिन्हें उन्होंने बड़ी सावधानी से तह कर रखा है। वह हमें चाय और बिस्कुट लिए बिना जाने नहीं देती।
जानकी अम्मा के लिए जीवन हमेशा आसान नहीं रहा है। कुछ समय पहले तक, वह और उनकी बेटी कोमल देहरादून में महिलाओं के लिए बनी एक सरकारी आश्रय गृह में रहती थीं, जिसमें मानसिक और संज्ञानात्मक विकलांगता युक्त परित्यक्त और निराश्रित महिलाएँ रहती हैं। किसी भी समय 100 से अधिक महिलाएं इस संस्था में रहती हैं और वहाँ उनके आने-जाने की स्वतंत्रता काफी प्रतिबंधित है। इन महिलाओं के लिए निजता या स्वायत्तता की कोई अवधारणा नहीं है। राज्य के संरक्षण में रहने के कारण उनके पास एक व्यक्ति को प्राप्त अधिकार नहीं हैं। वे अपने जीवन का कोई फैसला खुद नहीं कर पाती हैं- कि क्या खाएं और क्या पहनें, कहां रहें, किसके साथ और कैसे रहें। इन महिलाओं को अधिकारियों, देखभाल-कर्मियों और अन्य कर्मचारियों द्वारा या तो “संस्थावासी” या “बच्चों” के रूप में संबोधित किया जाता है। इनमें से ज्यादातर महिलाओं का कोई परिवार नहीं है, जो उन्हें वापस लेना चाहें। कोई उनसे मिलने नहीं आता है, और बाहरी दुनिया के साथ उनका बहुत कम संपर्क है।
प्रतिबद्ध परिवर्तन एजेंटों के एक छोटे समूह – रूरल इंडिया सपोर्टिंग ट्रस्ट ने, दि हंस फाउंडेशन और कीस्टोन ह्यूमन सर्विसेज इंटरनेशनल के साथ मिलकर इस कथा को बदलने के लिए काम किया है। हम मानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को, चाहे उनकी संज्ञानात्मक और मानसिक स्थिति कैसी भी हो, एक समुदाय के हिस्से के रूप में समाज के मुख्यधारा में रहना चाहिए। हम इस विचार के लिए प्रतिबद्ध हैं कि बंद और कड़े प्रतिबंध वाले संस्थानों में विकलांगता युक्त लोगों के संस्थानीकरण को चुनौती दी जानी चाहिए, और इसे बदला जाना चाहिए। उत्तराखंड सरकार और देहरादून के प्रमुख लेहमैन अस्पताल के साथ साझेदारी के साथ, दो परिवार-शैली के घरों को किराये पर लिया गया है जो एक समुदाय में अवस्थित हैं, जहां विकासात्मक विकलांगता युक्त 8 महिलाएं रहती हैं, जिसमें एक चौबीसों घंटे देखभाल करने वाली महिला भी होती है। पिछले 6 महीनों में हम, स्वायत्तता और निर्णय लेने की महत्ता और इन घरों में रहने वाली महिलाओं पर इसके सकारात्मक और चिकित्सीय प्रभाव के साक्षी रहे हैं। हमने स्वंय देखा है कि इन महिलाओं में किस तरह के बदलाव आए हैं, और कैसे उनके पड़ोसी भी उनके बारे में अपने संदेह और दुराव दूर करने में सफल हुए हैं। महिलाओं के साथ बातचीत के कुछ महीनों के बाद ही समुदाय के लोगों ने उनके बारे में नकारात्मक सोच रखने और असहज होने के अपने रवैये पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है।
हम एक ऐसी दुनिया का सपना देखते हैं, जहां हर व्यक्ति अपनी मर्जी से अपने फैसले खुद करे। जहां प्रत्येक व्यक्ति को एक समुदाय का हिस्सा होने की क्षमता प्राप्त हो। जहां संस्थानीकरण की बेड़ियां, परित्याग का अकेलापन और व्यक्ति की मानवता की अवहेलना खत्म हों। जहां हर किसी के पास एक परिवार, एक घर, और एक समुदाय से जुड़े होने की भावना हो और सामान्य जीवन जीने और स्वायत्तता के साथ समाज का एक उत्पादक सदस्य होने का कौशल प्राप्त हो। हमारा मानना है कि कम्युनिटी लाइव्स(सामुदायिक जीवन) इस लक्ष्य की ओर एक छोटा कदम और एक बड़ी छलांग है। हम यह देखने के लिए बहुत उत्साहित हैं कि ये महिलाएं जब अपनी इस यात्रा की शुरूआत करती है तो अपने जीवन में आगे क्या कुछ हासिल करेंगी।