सुधा नायर, पुणे की एक विशेष शिक्षिका और सक्रिय कार्यकर्ता, वर्ष 2018 में ही सामाजिक भूमिका मूल्यदर्द्धन की क्षमता से प्रभावित हुईं। उन्होंने हाल ही में एस.आर.वी. 3.0 में चार-दिवसीय कार्यक्रम में भाग लिया और अपने तेज दिमाग को व्यक्तिगत शिक्षा योजना (आई.ई.पी.) को, योग्यता वृद्धि के लिए एक सार्थक योजना से संबंधित करने की कोशिश में लगा दिया। उन्होंने पहले इसे लक्ष्यों को पूरा करने के लिए नक्शे के रूप में एक दस्तावेज़ और एक व्यक्ति के जीवन के लिए नक्शा तय करने वाली जीवन्त प्रक्रिया के बीच के अंतर का पता लगाया।
वह बताती हैं कि जौभी कि व्यक्तिगत शिक्षा योजना (आई.ई.पी.) विशिष्ट शिक्षण उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकता है, पर यह पूरी तरह से एक अपनापन भरा जीवन, स्वीकृति और जीवन में जो बातें सर्वोत्कृष्ट हैं उनकी तरफ बढ़ने के लिए एक छात्र को बड़ी तस्वीर प्रदान करना खो दे सकता है। उन्होंने पाया कि आई.ई.पी. को अक्सर एक जीवित दस्तावेज के रूप में वर्णित किया जाता है, लेकिन वे बुद्धिमानीपूर्वक कहती हैं कि एक प्रक्रिया जीवन्त हो सकती है लेकिन एक दस्तावेज़ नहीं। आप एक दस्तावेज़ में जीवन कैसे फूंक सकते हैं? उनका काम इस बात का पता लगाने के लिए गहराई से बंधा है। विकलांगतायुक्त एक छात्र के जीवन में अच्छी चीजों को लाने के लिए हम ऐसे दस्तावेज का उत्थान कैसे कर सकते हैं?
सुधा के लिए, इस तरह की योजना में शामिल होने वाली मूल्यवान भूमिकाओं का प्रबल विचार माता-पिता, शिक्षकों और छात्रों के साथ उसकी योजना निर्माण प्रक्रियाओं का केंद्र बिंदु बन गया है। उन्होंने उनके मनों में इन विचारों को खोला है कि एक लक्ष्य से कौशल जुड़े हो सकते हैं, लेकिन एक व्यक्ति की भूमिकाएं होती हैं, न कि केवल कौशल। यह वास्तविक जीवन है, परन्तु यह सरल लेकिन महत्वपूर्ण विचार हम में से बहुतों के मनों से छूट गया था।
सुधा लिखती हैं, “जब पारंपरिक तौर पर आई.ई.पी. तैयार किए जाते हैं, तो कमियों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है और कि उन्हें कैसे दूर किया जाए। हां, हम इसे उद्देश्य और कौशल विकास कहते हैं। लेकिन यह परिप्रेक्ष्य वास्तव में हमारे कार्य के दायरे को गतिविधियों तक ही सीमित कर देता है। एक विशिष्ट उद्देश्य यह होगा: ‘वस्तुओं की संख्या (1-10) की गणना करेगा और पूछने पर संबंधित फ्लैशकार्ड को इंगित करके स्वतंत्र रूप से उत्तर का संकेत देगा, 5 में से 4 बार।’ एक बार जब यह लक्ष्य हासिल हो जाता है, तो हम आगे बढ़ जाते हैं। हालांकि, अगर हम भूमिकाओं पर आधारित योजना का उपयोग कर रहे हैं, तो शुरुआती बिंदु, उसके समुदाय में एक व्यक्ति के रूप में उसकी पहचान होगी। वह कौन सी भूमिका है जिसे वह व्यक्ति अधिकांशतः आसानी से पूरा कर लेता है ? केवल दो शब्दों को जोड़ना – ’मूल्यवान भूमिकाएँ – बड़ा अंतर ले आता है।”
सुधा अपने स्वयं के अभ्यास और व्यवहार में आई.ई.पी. को भूमिकाओं के आधार पर तय करने के लिए काम कर रही है, ताकि छोटे उप-कौशल पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, वह शिक्षकों और अभिभावकों को उन भूमिकाओं की पहचान करने में मदद कर सके जिन्हें छात्र कर सकते हैं – जैसे शिक्षक का सहायक या सिर्फ छात्र की मूल भूमिका, जिसमें पूरे स्कूल की असेंबली में भाग लेना और बाकी कक्षा में कोई वस्तु वितरित करना सीखना जैसे कौशल शामिल हैं। एक बार जब छात्र उन भूमिकाओं को करना शुरू कर देते हैं, तो वह कुछ बहुत महत्वपूर्ण तत्वों की वृद्धि देख सकती है:
हालाँकि मूल्यवान भूमिकाओं को डिफ़ॉल्ट सेटिंग के रूप में रखने से यह शुरू से ही एक स्पष्ट और परिभाषित रास्ता प्रदान करती है। इसमें कोई तुक्का लगाना या छूट जाना नहीं होता। इस प्रक्रिया का सारा औचित्य, एक कमी वाले मॉडल से जिसमें कौशल हासिल करने की एक चेकलिस्ट होती है- से एक मूल्यवान व्यक्ति-केंद्रित मॉडल के रूप में योजना बनाने में बदल जाता है। एक आई.ई.पी. के आधार पर लक्ष्य निश्चित रूप से हासिल किए जाएंगे, लेकिन अपनापन, स्वीकृति, और सम्मान एक सुखद परिणाम हो सकता है या नहीं भी हो सकता है। एक व्यक्ति-केंद्रित, भूमिका-आधारित, मूल्य-निर्माण कार्यक्रम, हम जिन लोगों की सेवा करते हैं उनके लिए जीवन में अच्छी चीजों को हासिल करने में परिणत होते हैं। हम सुधा की भूमिका की सराहना करते हैं कि उन्होंने कार्य कोचिंग में और विकलांगतायुक्त छात्रों और उनके परिवारों और शिक्षकों को सुविधा उपलब्ध कराने में “लक्ष्यों को भूमिकाओं” के रूप में परिणत करने में एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया है।