संचार का अर्थ स्पष्ट हुआ
शबनम रहमान, क्रिस्टल माइंड्स, कोलकाता में एक पुनर्सुधार मनोवैज्ञानिक हैं और सार्थक अनुभवों के माध्यम से पसंदीदा पहचान, संभावनाओं और आशा का पता लगाने के लिए लोगों के साथ सुरक्षित स्थान का सृजन करने में विश्वास करती हैं। एक एस.आर.वी. लीडर के रूप में वह अपने नैदानिक कार्य में सामाजिक भूमिका मूल्यवर्धन के विचारों को शामिल करती हैं। वे परिवार की अनुमति से यह कहानी साझा कर रही हैं।
कई लोग असहज महसूस करते हैं जब वे ऐसे लोगों से मिलते हैं जो सामान्य तरीकों से संवाद नहीं करते हैं। ज्यादातर लोगों की धारणा है कि जो लोग बात नहीं करते या नहीं कर सकते, वे दूसरों को समझते भी नहीं हैं। ऐसे लोगों को अकसर संवाद करने में असमर्थ माना जाता है। अनजाने में, या सचेत रूप से, हम ऐसे लोगों की उपस्थिति को नजरंदाज कर सकते हैं, जो अलग-अलग तरीके से संवाद करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे अस्वीकार किए जाने के गहरे घावों और अकेलेपन की गहरी भावना का अनुभव करते हैं।
जब मैं पहली बार श्रेयान और उसके परिवार के साथ मिली, तो वह 5 साल का था। मैंने उसे एक हंसमुख, जिज्ञासु और मनमोहक बालक पाया। परिवार की मुख्य चिंता यह थी कि श्रेयान बहुत सक्रिय था, हमेशा घूमता-फिरता रहता था और दूसरों के साथ संवाद करने में उसे कठिनाई होती थी। स्कूल में, उसे सीखने के माहौल की गति और माँगों के साथ तालमेल बिठाना मुश्किल था, जिसमें एक गतिविधि से दूसरी गतिविधि में तेजी से बदलाव की उम्मीद की जाती थी। उसने दोस्त नहीं बनाये और उसे स्कूल के कार्यक्रमों में भाग लेने का अवसर नहीं दिया गया। श्रेयान के माता-पिता को तब असहजता महसूस हुई जब सभी ने उनसे पूछा, “श्रेयान बोल क्यों नहीं रहा है?” जब मैंने उनसे पूछा कि वे क्या अपेक्षा करते हैं, तो उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि वह अपना काम खुद करे और दूसरों को अपनी ज़रूरतें बताएं, अन्यथा लोग सोच सकते हैं कि वह चीजों को नहीं समझता है।” जैसे ही मैंने उनसे यह सुना, मेरे लिए स्पष्ट था कि उन्होंने व्यक्तित्व के महत्व को पहचान लिया था और वे देख सकते थे कि कैसे उसे विभिन्न गतिविधियों से अलग किया जा रहा था, और धीरे-धीरे धीमी गति से सीखने वाला या स्कूल में असफल होने वाला या यहां तक कि अपने परिवार पर बोझ जैसी नकारात्मक भूमिकाओं में डाला जा रहा था। मैं यह देखकर रोमांचित थी कि माता-पिता ने उसकी जरूरतों और क्षमताओं को सकारात्मक तरीकों से पहचाना था और एक अवमूल्यित भूमिका से बाहर निकलते हुए उसे एक सार्थक जीवन के लिए एक नई सामाजिक भूमिका में डालने के तरीकों की तलाश कर रहे थे।
सामाजिक भूमिका मूल्यवर्धन के मूल विचारों के प्रमुख सिद्धांतों में से एक यह है कि यदि विकलांगता युक्त लोगों को व्यक्तियों के रूप में देखा और व्यवहार किया जाता है, तो उन्हें “जीवन में अच्छी चीजों” का अनुभव करने की अधिक संभावना है, जैसे कि अपनापन की भावना, सम्मान, गरिमा और समुदाय में भाग लेने के अवसर। एस.आर.वी. सिद्धांत के प्रणेता, डॉ. वोल्फेंसबर्गर के अनुसार, किसी भी सेवा के प्रासंगिक होने के लिए, उसे सेवा सामग्री और उस प्रक्रिया के माध्यम से जिसके द्वारा सामग्री को सेवा मॉडल द्वारा संप्रेषित किया जाता है, सेवा प्राप्त कर्ताओं की प्राथमिक आवश्यकताओं को संबोधित करना होगा। मॉडल सुसंगतता के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए, हमने श्रेयान और उसके माता-पिता के साथ मिलकर उसकी क्षमताओं, प्राथमिकताओं, विकल्पों, जरूरतों और परिवार के मूल्यों को ध्यान में रखते हुए एक सुरक्षित सीखने का स्थान बनाया। श्रेयन ने हमें कुछ धारणाएँ बनाने के लिए मार्गदर्शन किया और हमें समझाया कि:
- हर व्यक्ति अपने पसंदीदा तरीकों से संवाद करना चाहता है।
- प्रत्येक व्यक्ति में पारस्परिक संचार करने की क्षमता होती है।
- हर किसी को संवाद करने के लिए कुछ समय चाहिए। हम जितना अधिक समय देंगे, हम उस व्यक्ति को उतना ही बेहतर समझ पाएंगे।
धीरे-धीरे माता-पिता ने इन मान्यताओं को समुदाय में आगे बढ़ाया। हमने यह खोज जारी रखी कि कैसे हम श्रेयान को बेहतर और सार्थक जीवन का आनंद लेने के लिए उन स्थानों और अवसरों का अनुभव करने में सक्षम बना सकते हैं जिन्हें आमतौर पर संस्कृति में महत्व दिया जाता है। धीरे-धीरे श्रेयान का परिचय विभिन्न सामाजिक स्थानों से हुआ। श्रेयन ने हमें भूमिका के प्रति उत्सुकता का मार्ग दिखाया, जिसका अर्थ है कि अधिकांश लोग मूल्यवान भूमिकाओं के लिए भूखे हैं, उन्हें अपने जीवन में चाहते हैं, और श्रेयन कोई अपवाद नहीं था। यह सोचने के नजरिये में एक पूर्ण बदलाव था जिसमें वह जो करने में असमर्थ था (“नहीं बोल पाना”) पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय हम उसके लिए और क्या खोज सकते हैं (“भूमिका की भूख”) पर ध्यान दिया जा सका।
अब श्रेयान 6 साल का एक स्वतंत्र और जिज्ञासु बालक है जो एक ‘फुटबॉल खिलाड़ी’, ‘एक प्रशिक्षक’, ‘एक दोस्त’, ‘एक समुदाय का सदस्य’, और ‘एक छात्र’ है जो पूरी गरिमा के साथ सामुदायिक गतिविधियों में भाग लेता है। यह देखकर मुझे बहुत खुशी और आशा मिलती है जब श्रेयान एक बड़ी मुस्कान के साथ मेरे कार्यालय का दरवाजा खोलता है और कहता है, “नमस्कार आंटी! क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?” मुझे आशा है कि इस यात्रा में मुझे ऐसे और भी “अहा” क्षणों का अनुभव होगा।