स्वतंत्रता दिवस पर एकता की एक मिसाल: एक अधिक न्यायपूर्ण और समावेशी दुनिया का जश्न मनाना
– डॉ. मलय कांति डे और ब्रताती चौधरी, माता-पिता, संस्थापक-चिनसुराह सेंस सोसाइटी, राष्ट्रीय एस.आर.वी. लीडर
विकलांगता युक्त व्यक्तियों सहित, अवमूल्यित व्यक्तियों के समावेशन करने का एक अभूतपूर्व मॉडल जो डॉ. वुल्फ वोल्फेंसबर्गर के सामाजिक भूमिका मूल्यवर्धन (एस.आर.वी.) के सिद्धांतों पर आधारित है, उसमें सामान्य स्थानों पर, सामान्य लोगों के साथ, सामान्य चीजों को सामान्य तरीकों से करना शामिल है
बेट्सी न्यूविल के नेतृत्व में कीस्टोन इंस्टीट्यूट इंडिया द्वारा समर्थित यह मॉडल, समावेशन के पारंपरिक दृष्टिकोण से परे न केवल व्यक्तियों की शारीरिक उपस्थिति पर जोर देता है बल्कि मुख्यधारा के वातावरण के भीतर रोजमर्रा की गतिविधियों में उनकी सक्रिय भागीदारी पर भी जोर देता है। यह वास्तविक एकीकरण को बढ़ावा देने और सामाजिक बाधाओं को तोड़ने के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में कार्य करता है जो अवमूल्यित व्यक्तियों को अकसर हाशिए पर धकेल देते हैं। यह हमें अपनी धारणाओं पर पुनर्विचार करने और फिर से परिभाषित करने की चुनौती पेश करता है, और एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए अधिक व्यापक और करुणामय दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है जहां हर व्यक्ति सामान्य और असाधारण दोनों तरीकों से आगे बढ़ सकता है और योगदान कर सकता है।
इस गहन समझ की भावना से, चिनसुराह सेंस सोसाइटी ने, एक स्थानीय तैराकी क्लब के सहयोग से, स्वतंत्रता दिवस पर एक दिल छू लेने वाला ‘बैठ कर चित्र बनाने” का कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें ऑटिज्म युक्त बच्चों और न्यूरो-सामान्य बच्चों को रचनात्मकता और सौहार्द के वातावरण में एक दिन बिताने के लिए एक साथ लाया गया। स्वतंत्रता दिवस, जो स्वतंत्रता और एकता का प्रतीक है, चिनसुराह के केंद्र में रंगों और समावेशन के अनूठे मिश्रण के साथ मनाया गया। चिनसुराह सेंस सोसाइटी, जो ऑटिज्म युक्त व्यक्तियों के लिए समावेशन और समर्थन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए जानी जाती है – ने “बैठ कर चित्र बनाने” का कार्यक्रम आयोजित करने के लिए गरबती आमरा कोयेकजोन तैराकी क्लब के साथ सहयोग किया, जिसने सामुदायिक भावना के कैनवास पर एक अमिट छाप छोड़ी।
15 अगस्त 2023 को आयोजित कार्यक्रम में सभी प्रकार की क्षमताओं वाले बच्चों का स्वागत किया गया, जिससे एक ऐसी जगह तैयार हुई जहां रचनात्मकता की कोई सीमा नहीं है। इस आयोजन को वास्तव में विशेष बनाने वाली बात ऑटिज्म युक्त बच्चों और उनके न्यूरो-सामान्य साथियों के बीच का सहयोग था, जिससे एक ऐसे माहौल को बढ़ावा मिला जहां कलात्मक अभिव्यक्ति के आनंद में सारे भेद दूर हो गए।
समावेशन, एक बहुआयामी घटना, विभिन्न प्रक्रियाओं के माध्यम से संचालित होती है, और ‘बहिष्करण के कई इलाकों’ से होकर गुजरती है। सुंदरता इस समझ में निहित है कि दिशात्मक प्राथमिकताओं से रहित पूरी प्रक्रिया ही ‘समावेशन’ है
वर्षों पहले, हमने अपने विशिष्ट घर, जो विशेष रूप से ऑटिस्टिक बच्चों के लिए डिज़ाइन किया गया था उसकी चहारदीवारी के अंदर ‘समावेशी’ लेबल के साथ एक “बैठ कर चित्र बनाने” के कार्यक्रम की शुरूआत की थी । दोस्तों और रिश्तेदारों को आमंत्रित करते हुए, हमने एक समावेशन प्रक्रिया की उत्पत्ति देखी जब वे अपने बच्चों के साथ शामिल हुए। जैसे-जैसे पहल ने गति पकड़ी, एक स्थानीय तैराकी क्लब के साथ एक परिवर्तनकारी सहयोग सामने आया। खेल के मैदान से सुसज्जित उनके परिसर में, जो एक सामान्य स्थान था- “बैठ कर चित्र बनाने” के कार्यक्रम के कार्यक्रम-स्थल परिवर्तन से कार्यक्रम की समावेशिता नई ऊंचाइयों पर पहुंच गई। इसका विकास जारी रहा जब हमने तैराकी क्लब के परिसर में ‘समावेशी’ “ बैठ-कर-चित्र बनाने” के कार्यक्रम का आयोजन करना जारी रखा। एकीकरण इसका मानक बन गया, जैसे कि क्लब के कुछ बच्चे कलात्मक प्रयासों में सहजता से शामिल हो गए। एक उल्लेखनीय बदलाव में, तैराकी क्लब अब सभी बच्चों के लिए “बैठ-कर- चित्र बनाने” के कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है, जिससे ‘समावेशी’ लेबल की आवश्यकता समाप्त हो गई है।
मूल प्रतिभागियों से परे इसका प्रभाव समुदाय के विविध आयामों तक प्रतिध्वनित होता है। वंचित बच्चे, सेवानिवृत्त व्यक्ति, अपनी कलात्मक प्रतिभा को फिर से तलाशने वाली गृहिणियां, और यहां तक कि दूर से प्रशंसा किए जाने के आदी सम्मानित व्यक्ति, सभी इसमें उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं। कई और आयाम अनकहे हैं लेकिन गहराई से महसूस किए जाते हैं। समावेशन की इस चल रही प्रक्रिया का साक्षी बनना बहुत ही खुशी की बात है। यह इस तथ्य का प्रमाण है कि समावेशन की यात्रा केवल बाधाओं को तोड़ने के बारे में नहीं है; यह एक ऐसी जगह बनाने के बारे में है जहां हर कोई, पृष्ठभूमि या क्षमता की परवाह किए बगैर, कला के माध्यम से खुद को अभिव्यक्त कर सकता है और स्वतंत्रता के असली रंगों का अनुभव कर सकता है।
कागज पर रंगों के जीवंत रेखाचित्र उस विविधता और एकता को दर्शाते हैं जो समुदाय को परिभाषित करती है। बच्चों ने अपनी रचनात्मकता और उत्साह से प्रेरित होकर ऐसी कलाकृतियाँ बनाईं जो समावेशन की शक्ति के बारे में बहुत कुछ बताती हैं। यह महज़ एक रेखाचित्र से कहीं अधिक था; यह उस साझा खुशी का प्रमाण था जो बाधाओं को तोड़ने और एक-दूसरे की ताकत का जश्न मनाने से आती है।
कार्यक्रम की सफलता सिर्फ प्रदर्शित कलाकृतियों से नहीं मापी गई, बल्कि दिन भर खिलने वाली मुस्कुराहट, हंसी और दोस्ती से मापी गई। माता-पिता, स्वयंसेवक और प्रतिभागी समान रूप से उपलब्धि की भावना के साथ वहाँ से लौटे, यह जानते हुए कि उन्होंने एक ऐसे आयोजन में योगदान दिया था जो सामाजिक मानदंडों से परे था।
जब हम इस यादगार दिन पर विचार करते हैं, यह एक यादगार के रूप में कार्य करता है कि समावेशन सिर्फ एक अवधारणा नहीं है; यह एक जीवंत अनुभव है जो हमारे जीवन को समृद्ध बनाता है और हमारे समुदाय के भीतर संबंधों को मजबूत करता है। चिनसुराह सेंस सोसाइटी और गरबती आमरा कोयेकजोन तैराकी क्लब द्वारा आयोजित “बैठ कर चित्र बनाने” का कार्यक्रम एक कला गतिविधि से कहीं बढ़ कर था; यह एकता, विविधता और स्वतंत्रता की सच्ची भावना का उत्सव था। यह समावेशन और सामुदायिक जुड़ाव को बढ़ावा देने के लिए कीस्टोन के मिशन की भावना को खूबसूरती से दर्शाता है। कीस्टोन इंस्टीट्यूट इंडिया के निदेशक बेट्सी न्यूविल के शब्दों में: “हाँ! हम साथ रहकर… साथ रहना सीखते हैं”।
चिनसुराह सेंस सोसाइटी के सचिव के शब्दों में, “हमारा मानना है कि कैनवास पर ब्रश का हरेक स्ट्रोक एक अधिक समावेशी समाज की दिशा में लिया गये एक कदम का प्रतिनिधित्व करता है। यह घटना इस तथ्य का प्रमाण थी कि, हमारे भिन्नताओं के बावजूद, जब हम एक साथ आते हैं, तो हम बनाते हैं – कुछ सुंदर।” इस स्वतंत्रता दिवस, चिनसुराह सेंस सोसाइटी और गरबती आमरा कोयेकजोन तैराकी क्लब ने साबित कर दिया कि स्वतंत्रता के असली रंग सिर्फ केसरिया, सफेद और हरा नहीं हैं, बल्कि एक वर्णक्रम है जो हर रंग को अपनाता है।