यदि आप ऑटिज्म सोसाइटी पश्चिम बंगाल के रोजगार प्रभाग में जाते हैं, तो आप वहां काम करने वाले लोगों और प्रशिक्षणार्थियों को“हमारे बच्चों” के रूप में सम्बोधित किया जाना नहीं सुनेंगे। आपदीवारों को उदारता पूर्वक देने वालों की प्रशंसा करते हुए दान पट्टिकाओं के साथ भरा हुआ नहीं देखेंगे और न ही दीवारों पर आटिस्म के प्रति जागरूकता फैलाने वाले या आटिस्म की पहचान कराने संबंधी पोस्टर देखेंगे। ये उदाहरण, वो “लाल बत्तियाँ” हैं जो यहां जिन लोगों की सेवा की जाती है उन्हें हमेशा के लिए बच्चों के रूप में देखे जाने, दान के बोझ, या चिकित्सा रूपी समस्याओं,जिनका हल निकालने की जरूरत है,के रूप में देखे जाने में योगदान करती हैं।आप यहां परिवारों को उनके उचित, सम्मानित नामों से संबोधित करते हुए सुनेंगे ना कि “तरूण की माँ “ के रूप में बुलाया जाना।आप स्कूल के खंड को स्कूल-संबंधीसाज-सज्जा से भरा हुआ देखेंगे और जहां सीखने के बारे में सकारात्मक संदेश मिलेंगे। काम करने वाले अनुभाग में आप वही संदेश पाएंगे जिनकी आप एककार्यस्थल में अपेक्षा करेंगे। ये सभी “हरी बत्तियाँ” हैं जो लोगों को प्रोत्साहित करती हैं कि जिन लोगों की यहां सेवा की जाती है, उन्हें पूर्ण व्यक्तियों और पूर्ण साथी नागरिकों के रूप में देख सकें।
इमेज एन्हांसमेंट(छवि वृद्धि) उन तरीकों में से एक है जिनके माध्यम से समाज में मूल्यवान भूमिकाएं प्राप्त की जा सकती हैंऔर छवि का उपयोग अन्य लोगों के बारे में लोगों के दिमाग में अच्छी बातें डालने के लिए किया जा सकता है। ऑटिज्म सोसाइटी पश्चिम बंगाल (ए.एस.डब्लयू.बी.)जो एक जोशीली संस्था है, जो बदलाव के लिए काम कर रही है, सामाजिक भूमिका मूल्यवर्द्धन में उनके प्रशिक्षण के पश्चात् इस विचार से काफी प्रभावित हुई और रूपक के रूप में कहें तो तुरंत ही एक आवर्धक लैंस लेकर अपने चारों ओर के छवि संदेशों की जांच करनी शुरू कर दी।
विकलांगता युक्त एक व्यक्ति के चारों ओर जो चित्र या छवि पाये जाते हैंउनकालोगों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है कि दूसरे लोग उन्हें कैसे देखेंगे।इस कारण से सकारात्मक छवि लोगों परउनके प्रति सकारात्मक भाव पैदा करने में प्रभाव डालती हैं। अक्सरविकलांगता युक्त लोगों के लिए बने कार्यक्रम शक्तिशाली “मूक संदेशों” से भरे होते हैं जो इतने सकारात्मक नहीं होते हैं। ए.एस.डब्ल्यू.बी. ने उस भवन में जहां ए.एस.डब्ल्यू.बी. स्थित है उसका विस्तृत और गहन निरीक्षण करने का निर्णय लिया ताकि इस मुद्दे से निपटा जा सके ।
उन्होंने ऐसा उस मानसिकता से किया जिसके द्वारा किसी भी ऐसी छवि कीपहचान की जा सके, जो शाश्वत बच्चे, सामाजिक बोझ, नैदानिक वस्तु या बीमार जैसी नकारात्मक भूमिकाओं को सुदृढ़ कर सकती हैं। एक बार ऐसा स्पष्ट होने पर, उन्होंने ऐसी छवियों के प्रभाव को हटाने या कम करने के लिए काम किये। कुछ बदलाव छोटे थे, जैसे नोटिस बोर्ड, जो शुरू में शिक्षकों के निर्देशों के लिए इस्तेमाल किया जाता था, उसे छात्रों के उम्र के उपयुक्त दृश्यों के साथ प्रतिस्थापित किया गया जो एक स्कूल के लिए उपयुक्त थे। “दान की गई”पट्टिकाओं को जो दान के बोझ की नकारात्मक भूमिका को सुदृढ़ करती हैं, उन्हें दानदाताओं को समझाने के बाद “भेंट स्वरूपदिये गये” में बदल दिया गया। छात्रों के लिए एक पुस्तकालय शुरू किया गया, एक संसाधन जिसकीआप छात्रों के लिए एक विद्यालय में अपेक्षा करेंगे। यहइस विचार को सुदृढ़ करेंगे कि छात्र ऐसे शिक्षार्थी हैं,जिनमें अपने ज्ञानको बढ़ाने के लिए बड़ी क्षमता है।
अतीत में, कई कर्मचारी उन वयस्कों का जिनके साथवे काम करते थे, उनका उल्लेख करते समय “हमारे बच्चों” के रूप में संबोधन करते थे। यह शब्दावलीप्रेम दर्शाने वाली और स्नेही थी। हालांकि, उन्होंने पहचान किया कि इस शब्द के इस्तेमाल से उनकीआयु का दर्जा घटाने की बात सुदृढ़ होती है, जो उन उम्मीदों को सीमित करता है जो लोग वयस्कों के लिए रखते हैं, साथ ही स्वामित्व की भावना प्रदर्शित होती है जो व्यक्तिगत एजेंसी को सीमित कर सकते हैं। एस.आर.वी. अध्ययन और सीखने में खुद को लीन करने के द्वाराशिक्षकों को यह महसूस करने में मदद मिली कि जब भी वे किसी व्यक्ति से बात करते हैं तो विकलांगता की गंभीरता की परवाह किए बिना उसकेवास्तविक उम्र को ध्यान में रखते हुएबातचीत उसी शैली में करें, जिसमेंहम साधारणतया लोगों के साथ उनके उम्र और सांस्कृतिक अपेक्षाओं के अनुरूप करते हैं।
एस.आर.वी. कार्यान्वयन के लिए एक कदम-दर-कदमतरीका अपनानेका निर्णय लेते हुए, ए.एस.डब्ल्यू.बी. ने भौतिक वातावरण में पाए जाने वाले छवि संदेशों पर एक अच्छी कठोर दृष्टि डाली है। एस.आर.वी. को लागू करने के लिए यह एक शानदार शुरुआत थी, जो प्रभावशाली और सरल रूप से “करने योग्य” थी, जब शुरू में बड़े प्रणालीगत परिवर्तन पहुंच से बाहर लगते हैं। ए.एस.डब्ल्यू.बी. टीम के सदस्यों ने अपने आप को छवि जासूसों में तब्दील कर लिया हैऔर इस बात से काफी फर्क पड़ा है कि जिनलोगों की वे सेवा करते हैं, उन्हें कैसे देखा जाता है और उनके साथ कैसा सलूक किया जाता है।