जनशक्ति का वरदान People Power
यह मानसिकता रखने का क्या मतलब है कि समाज में विकलांगता एक वरदान है जिसके बिना हम नहीं रह सकते हैं? कि विकलांगता का अनुभव करने वाले और ऐसे लोग जिनके जीवनों में इन व्यक्तियों की उपस्थिति की पूर्णता प्राप्त है वे महत्वपूर्ण कौशल, सबक और तकनीक रखते हैं, जिससे सभी लोगों को लाभ होता है? जिस खूबसूरत काम का यहाँ वर्णन किया गया है वह ऐसे ही एक पल को दर्शाता है, जहां हम विकलांगता युक्त लोगों के जीवनों में काम में लायी गई विधियों को पहचान सकते हैं।
बस इसी अवधारणा को दिसंबर में पुरुलिया में प्रदर्शित किया गया था, जहाँ एक मजबूत, सुरक्षित दुनिया बनाने के लिए प्रतिबध्द लोगों के एक समूह ने विकलांगता आंदोलन से एक शक्तिशाली साधन उधार लिया और इसे अपने काम पर व्यवहार में लाया।
जैसा कि सर्वविदित है, ‘योजना’ बनाने का काम अक्सर उन लोगों द्वारा किया जाता है जो आवाज और शक्ति दोनों रखते हैं, और इस तरह की योजना का परिणाम अक्सर दूसरों को निर्देशित करने के काम में होता है, जिनसे अपेक्षा की जाती है कि वे उसके अनुरूप बनें और मात्र अनुपालन करें। दशकों से, यही विकलांगता युक्त लोगों के लिए किया गया है, जहाँ पेशेवर, सरकारें, संगठन और यहां तक कि परिवार भी उनके भविष्य को निर्देशित करते हैं। इस प्रक्रिया में, विकलांगता युक्त लोगों की आवाज और शक्ति कभी-कभी अनसुनी रह जाती है। बौध्दिक और विकासात्मक विकलांगता वाले लोगों के लिए, इसके फलस्वरूप अक्सर छोटे और प्रतिबंधित जीवन जीने की विवशता आती है, और जहां लोगों के वरदानों को कभी प्रस्तुत नहीं किया जाता है।
व्यक्ति-केंद्रित योजना बनाने की तकनीकों को पहले ऐसे तरीके के रूप में विकसित किया गया था जिनके द्वारा एक व्यक्ति की एजेंसी और पूर्ण-व्यक्तित्व को पहचाना जा सके, जिसे अपने भविष्य को निर्देशित करने में सहायता की आवश्यकता हो सकती है। वास्तव में, इस प्रकार की तकनीकों में यह आवश्यकता होती है कि लगभग शाब्दिक अर्थों में व्यक्ति योजना बनाने की पूरी प्रक्रिया के दौरान उसके केंद्र में हो, जबकि व्यक्ति का समर्थन करने वाले लोग ध्यानपूर्वक सुनते हैं और सम्मानजनक अनुमान लगाते हैं कि व्यक्ति क्या चाहता है, या एक पूर्ण जीवन जीने के लिए उसकी क्या आवश्यकता हो सकती है, या इच्छा हो सकती है। इन प्रक्रियाओं, जैसे कि PATH, या MAPS, या व्यक्तिगत भविष्य की योजना(Personal Futures Planning), आदि का उपयोग भारत में विकलांगता युक्त लोगों के लिए योजना बनाने के बजाय उनके साथ मिलकर योजना बनाने के लिए किया जा रहा है।
पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में विभिन्न क्षेत्रों के लोगों का एक छोटा लेकिन जागरूक समूह ऐसी तकनीकों को अपनाने के लिए काम कर रहा है और एक नई पहल- आधार (बिस्वा गौरी ट्रस्ट की एक आउटरीच परियोजना) के दर्शन और कार्रवाई का मार्गदर्शन करने के लिए बहुत से विभिन्न हितधारकों को एक साथ ला रहा है । यह कार्यक्रम महत्वपूर्ण सामुदायिक कार्य करने वाली संस्था बंधु, पुरुलिया जैसे स्थानीय संगठनों को सशक्त बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। सरबानी मल्लिक, मीना जैन और बिस्वा गौरी चैरिटेबल ट्रस्ट की टीम और उनके सहयोगियों ने जिन्हें विकलांगता युक्त लोगों और उनके परिवारों के लिए एक समावेशी प्रक्रिया के रूप में PATH का उपयोग करने का अनुभव रहा है, उन्होने अपने काम को एक साथ तैयार करने के लिए विकलांगता युक्त लोगों के लिए इस्तेमाल में किए जाने वाले साधनों में से एक तरीका उधार लेने का फैसला किया क्योंकि वे जानते थे कि जिन समुदायों की वे सेवा करते हैं, वहां काम करने वाले और रहने वाले स्थानीय लोगों के पास योजना बनाने के चरणों में एक आवाज और चुनाव करने का विकल्प होना चाहिए। तस्वीरें यह सब बयान कर रही हैं – विविध लोग अपने दिल, दिमाग और विचारों को इस तरीके से एक साथ रख रहे हैं जिससे उनका सम्मान होता है जो उनके काम के केंद्र में हैं। कोई भी यह देख सकता है कि समर्थन के वृत में शामिल लोग दर्शन और वहां पहुंचने के मार्ग दोनों को विकसित करने की प्रक्रिया में पूरी तरह से भाग ले रहे है। यह शुक्रगुजारी की बात है कि समाज के अंदर विकलांगता की उपस्थिति ने हमें बेहतर सुनने, अनुकूलन करने, बढ़ने और सफल होना सिखाया है। हम घर-परिवारो में, बैठक कक्षों में, अंदर, बाहर, खेतों और जंगलों में समान रूप से, एक साथ सपने देखने के लिए और उस सपने को साकार करने के लिए एक साथ मिलते हैं। सभी आवाजें सुनी जाती हैं, और सभी आवाजें मायने रखती हैं।