नहीं किसी काम का

नहीं किसी काम का

– डॉ. रानू उनियाल, कवयित्री, लेखिका, प्रोफेसर और माँ

संपादक का नोट: डॉ. उनियाल विकासात्मक विकलांगता युक्त लोगों के बारे में कई लोगों द्वारा सामाजिक अस्वीकृतियों के प्रभाव और आहत वाली धारणाओं की क्रड़वी सच्चाई के साथ लिखती हैं।

नहीं किसी काम का

वो देखते हैं तुम्हें कुछ इसी तरह से

तुम बड़बड़ाते रहते हो बेइन्तिहाँ

 

पास आने की कोशिश करो न,

हाथ पकड़ो, मुसकुराओ, बातचीत करो न,

 

हमेशा दोस्ताना तुम

लेकिन वो पीछे हट जाते हैं

उन बातों से जो तुम्हारी पहचान है

 

तुम जानते हो, यह सही नहीं है

तुम जानते हो, तुम अलग हो

 

तुम्हें मालूम है, कि वे हंसते हैं, सिर्फ पीठ पीछे ही नहीं

लेकिन, तुम्हारे सामने भी

तुम्हारे पास एक सत है

 

जो वे हो नहीं सकते

तुम्हारा एक दिल है जिस तक वे पहुँच नहीं सकते

 

मैं कहती हूँ उन्हें ध्यान रखने को

वे रखेंगे संजोकर सच्ची दोस्ती

केवल विश्वासघात में

 

उस प्रेम का जिन्हें भास नहीं होगा

जब तक वे बूढ़े और मरणासन्न ना हो जाएं

 

मैं कहती हूँ उन्हें ध्यान रखने को

प्रेम की है बहुतायत वहाँ

उसमें जो नहीं किसी काम का

 

रानू उनियाल